तमिलनाडु में डॉक्टरों की भारी कमी! सरकार ने डॉक्टरों की छुट्टियों पर लगाई रोक, मचा हड़कंप

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नई दिल्ली,17 मई । तमिलनाडु में स्वास्थ्य संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। राज्य सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला लेते हुए सरकारी डॉक्टरों की अर्जित छुट्टियों (Earned Leave) पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह कदम राज्यभर में अस्पतालों में स्टाफ की गंभीर कमी से निपटने के उद्देश्य से उठाया गया है।

डायरेक्टर ऑफ मेडिकल एंड रूरल हेल्थ सर्विसेज (DMS), डॉ. जे. राजामूर्ति द्वारा जारी आदेश में सभी ज़िला स्तर के स्वास्थ्य सेवा संयुक्त निदेशकों (JDs) को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वे किसी भी डॉक्टर की छुट्टी की अर्जी DMS कार्यालय को न भेजें। यह प्रतिबंध डिप्टी डायरेक्टर्स, चीफ़ सिविल सर्जन्स और सीनियर सिविल सर्जन्स पर भी लागू होगा।

सरकारी सर्कुलर में कहा गया है, “डॉक्टरों की ओर से स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण, टीबी और कुष्ठ विभागों में बड़ी संख्या में छुट्टी की अर्जियां दी जा रही हैं। यदि इन्हें स्वीकृत किया गया, तो सार्वजनिक अस्पतालों में मरीजों की सतत चिकित्सा सेवा बाधित हो सकती है।”

सरकार का कहना है कि छुट्टियों पर प्रतिबंध तब तक लागू रहेगा जब तक स्टाफ की स्थिति में सुधार नहीं होता।

इस फैसले से डॉक्टरों में भारी नाराजगी है। “अचानक लागू हुए इस आदेश ने कई डॉक्टरों की महीनों पहले से तय विदेश यात्राएं तक रद्द करवा दीं,” एक डॉक्टर ने The New Indian Express से बातचीत में बताया।

सर्विस डॉक्टर्स एंड पोस्ट ग्रैजुएट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. पी. समीनाथन ने इस निर्णय को “अमानवीय” बताते हुए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “सरकार ने पिछले कई वर्षों में न तो नए पद सृजित किए और न ही स्टाफ बढ़ाया, जबकि मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अब बिना किसी विकल्प के डॉक्टरों की छुट्टियां रद्द कर देना न सिर्फ़ अनुचित है, बल्कि उनके मनोबल को भी तोड़ने वाला है।”

इस संकट की गंभीरता को हाल ही में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) की रिपोर्ट ने और उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु के 36 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में से 34 को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। इनमें स्टाफ की भारी कमी, प्रयोगशालाओं की खराब स्थिति और सर्जिकल ढांचे की कमज़ोरियां पाई गई हैं।

रिपोर्ट में सामने आया कि 95% विभागों में स्टाफ की कमी है, जिनमें जनरल मेडिसिन, ऑर्थोपेडिक्स और डर्मेटोलॉजी जैसे प्रमुख विभाग भी शामिल हैं।

इस मुद्दे पर DMS डॉ. राजामूर्ति और स्वास्थ्य सचिव पी. सेंथिलकुमार से संपर्क करने के कई प्रयासों के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है।

यह निर्णय तमिलनाडु की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर गहराते संकट को उजागर करता है। जहां एक ओर मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्यकर्मी थकान, अनिश्चितता और प्रशासनिक दबाव से जूझ रहे हैं।

अब बड़ा सवाल यह है—क्या सरकार इस आदेश को वापस लेगी? या फिर डॉक्टरों का यह दबाव आने वाले दिनों में एक बड़ा आंदोलन बनकर सामने आएगा?

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