ज्ञान की महायात्रा: राष्ट्रपति मुर्मू ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य को दिया 58वां ज्ञानपीठ सम्मान, गुलज़ार को भी मिला साहित्यिक गौरव

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नई दिल्ली,17 मई । भारत की साहित्यिक परंपरा ने आज एक ऐतिहासिक क्षण देखा जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संस्कृत के महान विद्वान और आध्यात्मिक संत जगद्गुरु रामभद्राचार्य को देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया। विज्ञान भवन में आयोजित इस भव्य समारोह में साहित्य, संस्कृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिला।

इस प्रतिष्ठित सम्मान के दूसरे प्राप्तकर्ता, मशहूर गीतकार और कवि गुलज़ार भी हैं, जो स्वास्थ्य कारणों से समारोह में उपस्थित नहीं हो सके। राष्ट्रपति ने उन्हें शुभकामनाएं देते हुए उनके बहुआयामी साहित्यिक योगदान को सलाम किया और उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।

राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने भाषण में कहा, “जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि ईश्वरीय दृष्टि, शारीरिक सीमाओं से कहीं ऊपर होती है।” उन्होंने कहा कि दृष्टिहीन होते हुए भी उन्होंने संस्कृत साहित्य, दर्शन और समाजसेवा में जो योगदान दिया है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।

रामभद्राचार्य जी न केवल एक महान साहित्यकार हैं, बल्कि एक राष्ट्रनिर्माता की भूमिका में भी हैं। उनकी रचनाएं, भाषाएं और विचारधाराएं भारतीय संस्कृति की आत्मा को जाग्रत करती हैं।

गुलज़ार को लेकर राष्ट्रपति ने कहा कि उनका लेखन भारतीय भावनाओं की नब्ज है। वे एक ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने प्रेम, पीड़ा, प्रकृति और परिवर्तन को शब्दों में इस तरह पिरोया है कि वे पीढ़ियों तक गूंजते रहेंगे।

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौर को याद करते हुए कहा कि साहित्यकारों और कवियों ने कैसे देश की आत्मा को शब्दों में बांधा। वंदे मातरम् से लेकर गीतांजलि तक, हर काव्य ध्वनि में देश की आत्मा बसती है। उन्होंने वाल्मीकि, व्यास, कालिदास और रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे दिग्गजों का नाम लेकर भारतीय साहित्य की गौरवशाली परंपरा को रेखांकित किया।

मुर्मू ने आशापूर्णा देवी, अमृता प्रीतम और महाश्वेता देवी जैसी प्रख्यात महिला लेखिकाओं का विशेष रूप से उल्लेख किया और कहा कि आज की महिलाएं भी साहित्य के माध्यम से समाज को दिशा दे सकती हैं।

1965 से चल रहा भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट का यह अभियान भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट लेखन को सम्मानित करता है। यह पुरस्कार न केवल लेखक की प्रतिष्ठा बढ़ाता है, बल्कि भारतीय भाषाओं और संस्कृति को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाता है।

इस सम्मान समारोह ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में साहित्य केवल कला नहीं, बल्कि संस्कृति की जीवित चेतना है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य और गुलज़ार जैसे दिग्गज साहित्यकारों का सम्मान इस चेतना को और प्रज्ज्वलित करता है।

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