“देश जल रहा है और आप कोर्ट में रोहिंग्या की कहानी सुना रहे हैं?”

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नई दिल्ली,16 मई । जब देश की सीमाएं असुरक्षित हैं, आतंकी घटनाएं सिर उठा रही हैं और आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रही है सरकार — ऐसे वक्त में भी कुछ ‘सजग’ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में “रोहिंग्या निर्वासन” को रोकने की अपील लेकर पहुंच जाते हैं।

लेकिन इस बार देश की सर्वोच्च अदालत ने जो रुख अपनाया, उसने न सिर्फ याचिकाकर्ता की नियत पर सवाल उठाया, बल्कि मानवाधिकार के नाम पर चल रहे ‘छद्म एजेंडे’ की भी परतें खोल दीं।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा —
“जब देश की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है, सीमा पार से घुसपैठ जारी है और चारों ओर तनाव फैला है, ऐसे समय में आप कोर्ट का वक्त इस तरह की याचिकाओं पर क्यों बर्बाद कर रहे हैं?”

पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से रोहिंग्याओं के “बुनियादी अधिकारों” और “मानवता की दुहाई” पर कड़ी आपत्ति जताई। जज ने कहा,
“हमारे जवान सीमाओं पर जान दे रहे हैं, आतंकी संगठन सक्रिय हैं, और आप इन लोगों के लिए रहम की अपील कर रहे हैं जो खुद अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं?”

याचिका में मांग की गई थी कि म्यांमार में उत्पीड़न से भागे रोहिंग्याओं को भारत से निर्वासित न किया जाए। पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

  • भारत कोई “शरणार्थी शरणस्थली” नहीं है।

  • कानून से ऊपर कोई नहीं — चाहे वो पीड़ित हो या अपराधी।

  • और राष्ट्र की सुरक्षा से बड़ा कोई भी “अंतरराष्ट्रीय करुणा” नहीं।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तीखा सवाल किया:
“क्या आप जानते हैं कि देश में कितने गैरकानूनी घुसपैठिए हैं? क्या आप यह समझते हैं कि इनमें से कितनों के संबंध आतंकी संगठनों से पाए गए हैं?”

यह सवाल केवल याचिकाकर्ता के लिए नहीं था, बल्कि उन तमाम ‘सेलेक्टिव एक्टिविस्टों’ के लिए था जो हर बार किसी विशेष वर्ग के लिए मोमबत्तियां जलाते हैं, लेकिन देश की सुरक्षा को लेकर मौन धारण कर लेते हैं।

इस टिप्पणी के बाद एक बार फिर स्पष्ट हो गया कि भारत का सुप्रीम कोर्ट अब ‘सेलेक्टिव जस्टिस’ के जाल में नहीं फंसने वाला।
राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता सर्वोपरि है, और कोर्ट ने यह संदेश दिया कि अगर कोई भी ‘मानवता’ की आड़ में देश के हितों से खिलवाड़ करेगा, तो उसे जवाबदेह बनाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने न केवल एक याचिका को खारिज किया, बल्कि ‘इलीट एक्टिविज़्म’ की उस सोच पर भी चोट की जो राष्ट्रहित के खिलाफ जाती है।
भारत आज जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें कानून की आड़ में नीतियों पर चोट करना एक खतरनाक प्रवृत्ति है — और अदालत ने समय रहते इस पर ब्रेक लगा दिया।

देश को कमजोर दिखाने की हर कोशिश को अब अदालत से भी जवाब मिलेगा — और यह जवाब अब पहले से कहीं ज्यादा सख्त होगा।

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