डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अश्लीलता मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त

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नई दिल्ली,28 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को ऑनलाइन अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने केंद्र सरकार और 9 OTT-सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि याचिका एक गंभीर चिंता पैदा करती है। केंद्र को इस पर कुछ कदम उठाने की जरूरत है। यह मामला कार्यपालिका या विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। ऐसे भी हम पर आरोप हैं कि हम कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल देते हैं। फिर भी हम नोटिस जारी कर रहे हैं।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट को लेकर कुछ रेगुलेशन पहले से मौजूद हैं। सरकार और नए नियम लागू करने पर विचार कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट विष्णु शंकर जैन पेश हुए।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार से OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि ऐसी सामग्री युवाओं और समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

कोर्ट ने 21 अप्रैल को भी कहा था- नियम बनाना केंद्र का काम सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 21 अप्रैल को इसी याचिका पर सुनवाई की थी। तब भी कोर्ट ने कहा था कि याचिका में उठाया गया मुद्दा एक नीतिगत मामला है और यह केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। इस संबंध में नियम बनाना केंद्र का काम है। जस्टिस गवई ने कहा था,’हम पर आरोप लगाया जा रहा है कि हम कार्यपालिका और विधायी कार्यों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।’

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के हाल ही में की गई टिप्पणियों के बाद आई है। दोनों ने कोर्ट पर न्यायिक अतिक्रमण का आरोप लगाया था। इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को लेकर बहस चल रही है।

धनखड़ ने 23 अप्रैल को कहा था कि संसद ही सबसे ऊपर है। उसके ऊपर कोई नहीं हो सकता। सांसद ही असली मालिक हैं, वही तय करते हैं कि संविधान कैसा होगा। उनके ऊपर कोई और सत्ता नहीं हो सकती। इससे पहले 17 अप्रैल को धनखड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का काम ऐसा है, जैसे वो सुप्रीम संसद हो।

धनखड़ से पहले निशिकांत दुबे ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। ऐसे में CJI किसी राष्ट्रपति को निर्देश कैसे दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के बिलों को लेकर राष्ट्रपति के लिए भी एक महीने की टाइम लाइन तय कर दी थी। इस फैसले के बाद निशिकांत दुबे और जगदीप धनखड़ ने बयान दिए।

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