दोगलापन या रणनीति? पाकिस्तान को मदद भेजने वाला तुर्की, भारत के एयरपोर्ट्स पर चला रहा सिक्योरिटी ऑपरेशन — क्या देश की सुरक्षा पर मंडरा रहा है खतरा?

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नई दिल्ली,15 मई । ये महज इत्तेफाक नहीं… ये वही तुर्की है, जिसने हाल ही में पाकिस्तान की मदद के नाम पर दोस्ती निभाई। इसी तुर्की की एक निजी कंपनी अब भारत के एयरपोर्ट्स की सुरक्षा व्यवस्था की कमान संभाल रही है! सवाल उठना लाज़मी है — क्या देश के संवेदनशील एयरपोर्ट्स की सुरक्षा विदेशी हाथों में सौंप देना सही है?

तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन और पाकिस्तान के नेताओं के बीच पुराना और गहरा रिश्ता है।

  • कश्मीर मुद्दे पर तुर्की बार-बार भारत विरोधी बयान देता रहा है।

  • हाल ही में पाकिस्तान को भेजी गई मानवीय और रक्षा-संबंधी मदद ने भी इस दोस्ती को फिर उजागर कर दिया।

तो फिर सवाल उठता है — क्या इस “मित्र” देश की कंपनी को भारत में प्रवेश देना खतरे से खाली है?

इस तुर्की कंपनी का नाम है [XYZ Aviation Security Inc.] (नाम प्रतीकात्मक है)
यह कंपनी भारत के कई बड़े एयरपोर्ट्स पर ग्राउंड हैंडलिंग, सिक्योरिटी मैनेजमेंट और स्कैनिंग जैसे कार्यों में लगी हुई है।

  • दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद जैसे बड़े एयरपोर्ट्स पर इसकी मौजूदगी

  • यात्रियों की चेकिंग, बैगेज स्कैनिंग और रनवे एक्सेस तक की जिम्मेदारी

  • संवेदनशील डेटा और मूवमेंट की जानकारी इस कंपनी के हाथों में

क्या ये सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट है? या भारत की सुरक्षा के लिए छिपा खतरा?

खुफिया सूत्रों के हवाले से खबर है कि कई एजेंसियों ने इस विषय पर अपना इनपुट सरकार को भेजा है
एक सीनियर सिक्योरिटी अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया:

“हम किसी विदेशी ताकत को अपने हवाई अड्डों की नस-नस तक पहुंच नहीं दे सकते — ये रणनीतिक खतरा है!”

विपक्षी नेताओं ने सरकार से जवाब मांगा है:

  • क्या जांच की गई थी इस कंपनी की बैकग्राउंड?

  • क्या IB और RAW ने क्लीयरेंस दी थी?

  • क्या भारत के करोड़ों यात्रियों की सुरक्षा से किया गया खिलवाड़?

सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड कर रहा है — #AirportSecurityBreach

सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह एक “कॉमर्शियल डील” है, और सुरक्षा मानकों से कोई समझौता नहीं हुआ है।
लेकिन क्या आज के दौर में केवल कागजी जांच ही काफी है?

एक ओर पाकिस्तान को गले लगाने वाला तुर्की, दूसरी ओर भारत की हवाई सुरक्षा को छूता हुआ तुर्की — क्या यह सिर्फ इत्तेफाक है? या बड़ी कूटनीतिक चूक?

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