एवरेस्ट की चोटी पर थमी साँसें: पश्चिम बंगाल के 45 वर्षीय पर्वतारोही की दर्दनाक मौत
नई दिल्ली,16 मई । एक और सपना, बर्फ़ की चादर में हमेशा के लिए सिमट गया। दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट को फ़तेह करने निकले पश्चिम बंगाल के 45 वर्षीय पर्वतारोही की जान, वापसी के दौरान चले कठिन संघर्ष में चली गई। यह घटना न केवल रोमांच के शौकीनों के लिए चेतावनी है, बल्कि उस जज़्बे की भी गवाही देती है, जो इंसान को मौत की सरहद तक पहुँचा देता है।
मृतक की पहचान अब तक स्पष्ट नहीं की गई है, लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट्स के मुताबिक वे एक अनुभवी ट्रेकर थे और पिछले कई वर्षों से एवरेस्ट की चढ़ाई का सपना देख रहे थे। बताया जा रहा है कि एवरेस्ट की चोटी पर सफल चढ़ाई के बाद जब वे लौट रहे थे, तभी अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई। ऑक्सीजन की कमी और अत्यधिक थकावट ने उनकी हालत और भी नाज़ुक बना दी।
अक्सर ऐसा माना जाता है कि चोटी पर पहुँचना ही सबसे कठिन होता है, लेकिन पर्वतारोहण विशेषज्ञों का कहना है कि असली परीक्षा नीचे लौटते वक़्त होती है। तापमान में गिरावट, ऑक्सीजन की बेहद कमी और शरीर की सीमाएं — यह सब मिलकर पर्वतारोही को बेहद कमजोर बना देते हैं।
जैसे ही उनके गिरने की सूचना मिली, नेपाल स्थित बेस कैंप से रेस्क्यू टीम को रवाना किया गया। हेलीकॉप्टर से मदद पहुँचाने की भी कोशिश हुई, लेकिन ऊँचाई और मौसम की मार ने हर कोशिश को असफल बना दिया। जब तक मदद पहुँची, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
कोलकाता स्थित उनके घर में जैसे ही मौत की खबर पहुँची, मातम छा गया। परिवार वालों को यकीन ही नहीं हो रहा कि जो इंसान ज़िंदगी भर ऊँचाइयों का दीवाना था, वो हमेशा के लिए एक चोटी पर रुक गया। पर्वतारोहण समुदाय में भी यह एक गहरा आघात माना जा रहा है।
हर साल सैकड़ों पर्वतारोही एवरेस्ट को फ़तेह करने निकलते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही सही-सलामत लौट पाते हैं। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह जुनून ज़िंदगी से बड़ा हो गया है?
यह हादसा एक चेतावनी है — साहस और सीमा के बीच की पतली रेखा को समझने की। एवरेस्ट हर किसी को बुलाता है, लेकिन हर कोई वहाँ से लौट नहीं पाता। पश्चिम बंगाल के इस जाँबाज़ की कहानी अब एवरेस्ट की बर्फ़ में दर्ज हो चुकी है — एक ऐसी कहानी जो रोमांच के साथ एक टीस भी छोड़ गई है।