बलूचिस्तान ने किया पाकिस्तान से आज़ादी का ऐलान: दक्षिण एशिया के लिए क्या होंगे इसके मायने?

0

नई दिल्ली,17 मई । दक्षिण एशिया के सबसे पुराने और जटिल संघर्षों में से एक में बड़ा मोड़ आ गया है। बलूच राष्ट्रवादी नेताओं ने पाकिस्तान से औपचारिक रूप से स्वतंत्रता की घोषणा कर दी है। दशकों की उपेक्षा, ज़बरन गायब किए जाने और सैन्य दमन को आधार बनाते हुए उन्होंने यह ऐतिहासिक फैसला लिया। सोशल मीडिया पर स्वतंत्र ‘रिपब्लिक ऑफ बलूचिस्तान’ का झंडा और नक्शा तेजी से वायरल हो रहा है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें एक बार फिर इस संसाधनों से भरपूर लेकिन संघर्षरत क्षेत्र पर टिक गई हैं।

यूरोप से बात करते हुए प्रमुख बलूच कार्यकर्ता मीर यार बलोच ने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से नवगठित गणराज्य को मान्यता देने की अपील की। एक वायरल पोस्ट में उन्होंने लिखा, “बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है,” और विश्व शक्तियों से उनके संघर्ष का समर्थन करने की गुहार लगाई।

पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत (क्षेत्रफल के हिसाब से) बलूचिस्तान, लंबे समय से अलगाववादी भावनाओं का गढ़ रहा है। 1948 में कलात की रियासत को जबरन पाकिस्तान में मिलाने के बाद से ही यह मुद्दा लगातार सुलगता रहा है। बीते दशकों में पांच बड़े विद्रोह हो चुके हैं, जिनका जवाब हमेशा सैन्य दमन से दिया गया।

बलूचिस्तान प्राकृतिक गैस, कोयला और खनिजों से भरपूर है, फिर भी यह पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा और उपेक्षित इलाका बना हुआ है। स्थानीय कार्यकर्ताओं का आरोप है कि इस्लामाबाद ने उनके संसाधनों का जमकर दोहन किया, लेकिन क्षेत्र को स्वायत्तता या विकास का कोई लाभ नहीं मिला।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) बलूचिस्तान से होकर गुजरता है, लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि उनके घर उजाड़े जा रहे हैं और पूरी आबादी को सैन्य निगरानी में रखकर विदेशी निवेश के नाम पर कुचला जा रहा है।

इस आंदोलन की अगुआई मीर यार बलोच, BLA कमांडर बशीर ज़ैब, UBA नेता मेहरान मारी, BRP प्रमुख ब्रह्मदाग़ बुगती, और BLF के डॉ. अल्लाह नज़र बलोच जैसे नाम कर रहे हैं। जहां कुछ नेता कूटनीतिक रास्ता अपनाने के पक्षधर हैं, वहीं ज़ैब और नज़र जैसे लोग सशस्त्र संघर्ष के जरिये आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं।

निर्वासित बलूच नेताओं ने भारत से कूटनीतिक और रणनीतिक समर्थन की अपील की है। बुगती और मीर यार बलोच जैसे नेता 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी में भारत की भूमिका का हवाला देकर समर्थन मांग रहे हैं।

हालांकि भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटनाक्रम भारत-पाकिस्तान के संबंधों में नई दरार डाल सकता है। खासकर CPEC और चीन की मौजूदगी के चलते यह मामला और संवेदनशील हो गया है।

‘रिपब्लिक ऑफ बलूचिस्तान’ अभी सिर्फ कागज़ों और नारों में है, लेकिन इसकी घोषणा ने पूरे दक्षिण एशिया में भूचाल ला दिया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि विश्व समुदाय एक लंबे समय से दमित समुदाय के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करता है या एक अस्थिर क्षेत्र में और तनाव की कीमत पर चुप्पी साधता है।

इस ऐलान ने एक बार फिर साबित कर दिया है—दमन जितना गहरा होगा, विद्रोह उतना ही तेज़।

Leave A Reply

Your email address will not be published.