“भारत ट्रंप की आंख की किरकिरी क्यों बन गया है? जानिए वो 4 वजहें जो उन्हें चुभ रही हैं”

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नई दिल्ली,16 मई । पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर भारत पर टिप्पणी कर चर्चा में हैं। कभी “अच्छा दोस्त” कहने वाले ट्रंप अब भारत के खिलाफ बयान देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। लेकिन सवाल यह है कि भारत अब अचानक ट्रंप की आंखों में चुभने क्यों लगा है? वजहें सतह पर नहीं, गहराई में छिपी हैं — और ये वजहें केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सत्ता, स्वाभिमान और वैश्विक वर्चस्व की तिकड़ी से जुड़ी हैं।

आइए जानें वो चार ठोस कारण जिनके चलते भारत, ट्रंप के लिए अब दोस्त नहीं, चुनौती बन चुका है:

1. भारत का “ना” कहना अमेरिका को बर्दाश्त नहीं!

ट्रंप को ऐसे नेता पसंद हैं जो सिर झुकाकर उनकी बात मानें। लेकिन भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका के कई दबावों के आगे झुकने से इनकार किया है — चाहे वो रूस से हथियारों की खरीद हो या ईरान से कच्चे तेल का आयात। भारत ने बार-बार स्पष्ट किया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेगा, न कि व्हाइट हाउस के इशारों पर।

यही आत्मनिर्भरता ट्रंप को सबसे ज़्यादा खलती है।

2. चीन के बाद अब भारत बन रहा है सुपरपावर का नया दावेदार

ट्रंप और उनके जैसे अमेरिकी राजनेता वर्षों से यह मानते आए हैं कि एशिया में असली टक्कर सिर्फ चीन दे सकता है। लेकिन भारत ने बीते दशक में जिस तरह तकनीक, रक्षा, व्यापार और कूटनीति में खुद को स्थापित किया है, उसने अमेरिका को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

भारत अब ‘विकासशील देश’ नहीं, बल्कि ‘निर्णय लेने वाला देश’ बन गया है। और यह उभरता नेतृत्व ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” सोच को सीधी चुनौती देता है।

3. मोदी की लोकप्रियता बनाम ट्रंप की असुरक्षा

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक छवि एक मजबूत और निर्णायक नेता की है। उनकी विदेश यात्राएं, भारतीय प्रवासी से जुड़ाव और भाषणों की पकड़, ट्रंप को खुद से तुलना करने पर मजबूर कर देती है। जहां ट्रंप अब पूर्व राष्ट्रपति हैं और दोबारा चुनावी संघर्ष में उलझे हैं, वहीं मोदी अब भी सत्ता में हैं और जनता के बीच उनकी पकड़ कायम है।

ट्रंप की ‘हीरो बनने की आदत’ मोदी की वैश्विक छवि से टकरा रही है।

4. भारत की “मीडिया-मुक्त” विदेश नीति

ट्रंप की कूटनीति कैमरों और ट्वीट्स में सिमटी रही है, जबकि भारत ने हमेशा शांत, संयमित और मीडिया से दूर रहकर वास्तविक परिणाम देने वाली नीति अपनाई है। यही वजह है कि जब ट्रंप बार-बार भारत-पाक के बीच ‘युद्ध टालने’ का श्रेय लेने की कोशिश करते हैं, भारत सख्ती से कहता है: “हमने खुद फैसला लिया, किसी मध्यस्थ की जरूरत नहीं।”

डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान केवल बड़बोलापन नहीं हैं, वे एक सुपरपावर की असहजता का संकेत हैं — उस देश की जो अब भारत को ‘स्ट्रैटजिक पार्टनर’ नहीं, एक संभावित प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रहा है।

भारत की आंखों में झांकने की बजाय, ट्रंप को शायद आईना देखना चाहिए — क्योंकि इस बार अमेरिका को जवाब देने वाला कोई पिछलग्गू नहीं, एक दृढ़, आत्मनिर्भर और आत्मसम्मानी भारत है।

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