रामायण – भारत की जीवंत आत्मा

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 भारत, वह पावन भूमि, जहाँ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक वैभव का सागर लहराता है, अपनी सभ्यता के अथाह इतिहास से सुशोभित है। यह वह देश है, जिसका इतिहास सभ्यता की अमर गाथाओं से सजा है, जिन्हें हम अपने प्राचीन ग्रंथों और महाकाव्यों के पन्नों में जीते हैं। हम भारतीयों के बचपन की स्मृतियाँ रामायण की उन मधुर कथाओं से रंगी हैं, जो दादी–नानी की स्नेहिल वाणी में बसी हैं। जन्मदिवस, वर्षगाँठ, राम नवमी, हनुमान जयंती—हर पावन अवसर पर हमारे आंगनों में अखंड रामायण पाठ के मधुर स्वर गूंजते हैं। जब हम मिलते हैं, तो “जय श्री राम” का उद्घोष हमारी आत्मा को प्रज्वलित करता है, मानो हर धड़कन में राम बसे हों! दशहरा के उल्लास में, गली–गली में रामलीला का मंचन होता है, जहाँ स्थानीय कलाकार रामायण के चरित्रों को मंच पर साकार करते हैं। सायंकाल पंडालों में जनसैलाब उमड़ता है, और देर रात तक यह दिव्य नाट्य हृदय को बाँधे रखता है। वह दिन याद आते हैं, जब दशहरा की छुट्टियाँ तीन सप्ताह तक उत्सवमय रहती थीं—यद्यपि अब समय संक्षिप्त हुआ, पर राम का उत्साह अटल है! इस प्रकार, भगवान राम भारतवासियों के जीवन का अविच्छिन्न अंग हैं।

भगवान राम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता हैं—सर्वगुण संपन्न, वह आदर्श जो जीवन को धर्म और सिद्धांतों की राह पर ले जाता है। सत्य ही है यह कथन –

“कर्म में राम का अनुसरण करो, ज्ञान में कृष्ण का”

“राम” शब्द का अर्थ है – “रमंते इति राम:”, अर्थात्, वह तत्व जिसमें विश्व समाहित है, जिसमें चेतना डूब जाती है – वह राम, जो सृष्टि का आधार है! रामायण हमारे हृदय के इतने निकट है कि हमने राम जन्मभूमि मंदिर का पुनर्निर्माण किया, जो प्राय पाँच सौ वर्ष पूर्व मुगलों द्वारा विध्वंसित किया गया था, और जनवरी 2024 में पुनर्निर्मित भव्य राममंदिर का उदघाटन हमारी आस्था का विजय–गान बना! हुआ।  भगवान राम की कथा भारत के प्रत्येक बालक और प्रौढ़ के हृदय में क्यों बसी है?  क्यों हम कहते हैं कि राम हमारी जीवनधारा हैं? क्यों हर पल “जय श्री राम” का उद्घोष गूंजता है? ऐसा इसीलिए है क्योंकि

“रामायण हमारा गौरवमय इतिहास है, भारत की धड़कती आत्मा है!”

हमारे परिवारों में रामायण की कथाएँ सहस्राब्दियों से सांस्कृतिक एकता का सजीव प्रमाण रही हैं। जैसे हमारे दादा–दादी ने हमें राम की गाथाएँ सुनाईं, वैसे ही उनके पूर्वजों ने उन्हें भी सुनाई होंगी, और ये क्रम अनंत काल से चला आ रहा है। इस अमर परंपरा के साक्षी हैं हमारे महान संत— गौतम बुद्ध (6वीं-5वीं शताब्दी ई.पू.), चैतन्य महाप्रभु (15वीं-16वीं शताब्दी), महावीर जी (6वीं शताब्दी ई.पू., जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर), असम के श्रीमंत शंकरदेव (15वीं शताब्दी), गुरु नानक सिंह जी (14वीं-15वीं शताब्दी)। ये सभी इस पावन भारत भूमि पर अवतरित हुए, और आज उन्हें देवतुल्य पूजा जाता है।उसी तरह, मर्यादा पुरुषोत्तम, हमारे प्रभु राम, सहस्राब्दियों पूर्व अयोध्या की पावन धरती पर अवतरित हुए, और हमारा हृदय आज भी उनके लिए धड़कता है!

धर्म और राजनीति का पृथक्करण असंभव है, न ही धर्म और विकास को अलग किया जा सकता है। तभी तो हम भगवान राम की आराधना करते हैं, जिन्होंने हर कर्म में धर्म का दीप जलाया। एक पुत्र कैसा हो, एक भाई कैसा हो, एक मित्र कैसा हो, एक राजा कैसा हो, दांपत्य धर्म कैसे निभाना है, धर्म की रक्षा कैसे करनी है, शत्रु का नाश करने के लिए शौर्य —इन सभी प्रश्नों के उत्तर राम में है। आज्ञाकारी, धैर्यवान, धर्मप्राण, न्यायप्रिय, सामाजिक समरसता के आदर्श जनप्रिय राजा श्रीराम। रामजी ने भीलनी माता शबरी के झूठे बेर खाये, व्यावसायिक जाति (नाविक, मछुआरा)  के राजा निषाद राज ने राम जी को गंगा पार कराई और उनसे गले मिले, वनवासी राजा सुग्रीव के साथ मित्रता निभाई, और अनेकों उदाहरण हैं – हमारा आदर्श राम ही हमारे संस्कारों और आचारों का सूरज हैं। रामायण में असंख्य उदाहरण हैं, जो हमें धर्म और सत्य की राह पर चलना सिखाती हैं।

वनवास के पश्चात् जब प्रभु राम अयोध्या के सिंहासन पर विराजे, तब महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना प्रारंभ की। यह प्रथम छह कांडों और उत्तर कांड की लेखन शैली में झलकता है। अब हम भारत और पड़ोसी देशों में रामायण के प्रमाणस्वरूप कुछ संदर्भों का ध्यान करते हैं –

  1. खगोलीय संदर्भ

वाल्मीकि रामायण में प्रभु राम के जन्म के समय ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का उल्लेख है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह घटना सहस्राब्दियों पूर्व घटी। अगस्त्य मुनि का काल (5100 ई.पू.) भी रामायण के समय से संनादति है, जो विंध्य पर्वत से अगस्त्य या अगस्ति तारा (कैनोपस स्टार) की दृश्यता से प्रमाणित है। यह तथ्य ए.के. भटनागर (वेदों पर वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान) के शोध से भी उजागर हुआ, जो “वैदिक और महाकाव्य युग से सांस्कृतिक निरंतरता निर्धारण” पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, नई दिल्ली, 23-24 फरवरी, 2014 में प्रस्तुत किया गया।

  1. आनुवंशिक संदर्भ

वाल्मीकि रामायण में कोल, भील और गोंड जनजातियों का उल्लेख है (विशेष रूप से अयोध्याकांड, अरण्यकांड और किष्किन्धाकांड में), जो आज भी भारत के विभिन्न भागों में विद्यमान हैं। गोंड और भील जनजातियाँ जनसंख्या की दृष्टि से भारत की शीर्ष जनजातियाँ हैं। 2015 में प्रकाशित एक शोध कार्य (जर्नल PLOS ONE में प्रकाशित हुआ शोध पत्र), जिसका नेतृत्व डॉ ज्ञानेश्वर चौबे ने किया, जिसका शीर्षक था:

रामायण में उल्लिखित भील, कोल और गोंड की आनुवंशिक समानता

इस शोध कार्य में 97,000 एकल न्यूक्लियोटाइड पॉलीमॉर्फिज्म का विश्लेषण किया गया। सांख्यिकीय विधियों से यह सिद्ध हुआ कि इनका जीन पूल सहस्राब्दियों से दक्षिण–पूर्व एशिया में अटल है। यह अध्ययन यह भी दर्शाता है कि भारत की जनता रामायण काल से यहाँ बसी है, और यह आनुवंशिक निरंतरता रामायण की सत्यता का गान है! भारतीय जनसंख्या की वंशावली में जनजातीय और सरस्वती घाटी (5,000 वर्ष पूर्व) के निवासियों का मेल है। पाषाण युग से इस जीन पूल निरंतरता प्रमाणित हुई है, और वर्तमान जनसंख्या के साथ उनकी समानता रामायण की प्रामाणिकता को बल देते हुए उसके गौरव को अमर करती है। यह निष्कर्ष 27 मार्च, 2020 को नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए शोध पत्र से निकलता है (अंशिका श्रीवास्तव, जॉर्ज वैन ड्रिएम, ज्ञानेश्वर चौबे आदि, https://www.nature.com/articles/s41598-020-61941-z)।

  1. पाठ्य, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रमाण
  2. i) रामायण की घटनाओं का महाभारत और पुराणों में उल्लेख।
  3. ii) अयोध्या के पुरातात्विक शिलालेख, जैसे 12वीं शताब्दी का विष्णु–हरि शिलालेख, राम के साथ इस पावन भूमि के बंधन को प्रमाणित करते हैहैं।

iii) रामायण की लोकप्रियता और भारतीय संस्कृति पर इसका अमिट प्रभाव इसकी ऐतिहासिक महत्ता को और सुदृढ़ करते हैं।

अनेक पुराण अयोध्या को सात पवित्र नागरियों में गिनते हैं—मथुरा, द्वारका, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, उज्जैन के साथ। महाकवि कालिदास ने विष्णु के श्री राम रूप में अवतार की गाथा गाई।  भागवत पुराण, शिव पुराण, गरुड़ पुराण आदि में भी भगवान राम का स्मरण है।

  1. महाकाव्य गौरव

रामायण के 300-400 विविध संस्करण हैं, जो भारत की विविध भाषाओं और क्षेत्रीय व्याख्याओं से उत्पन्न हुए। बौद्ध और जैन धर्म के अनुकूलन, दक्षिण–पूर्व एशिया के देशों—कंबोडिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, बर्मा, फिलीपींस, श्रीलंका, नेपाल, वियतनाम, सिंगापुर, मलेशिया, लाओस आदि में प्रचलित क्षेत्रीय संस्करण शामिल हैं, जो अखंड भारतवर्ष की संकल्पना को सशक्त करते हैं।

  1. भौगोलिक और पुरातात्विक संदर्भ

कुछ धार्मिक स्थल और महत्वपूर्ण स्थान, जो रामायण की घटनाओं से जुड़े हुए हैं –

  1. राम जन्मभूमि मंदिर, अयोध्या का पुनर्निर्माण और इसके पुरातात्विक अवशेष रामायण के गौरव को साक्ष्य देते हैं।
  2. हनुमान गढ़ी—अयोध्या के हृदय में अवस्थित, जहाँ हनुमान जी ने राम के वनवास के समय रामकोट की रक्षा की।
  3. रामायण से संबंधित अनेक मंदिर, तीर्थ और ऋषि–मुनियों के आश्रम आज भी विद्यमान और जीवंत हैं, जैसे —वाल्मीकि मुनि का आश्रम (बिठूर, उज्जैन और नेपाल), गुरु वशिष्ठ का आश्रम (गुवाहाटी), पंचवटी (नासिक), अक्षय वट (प्रयागराज), सीता की रसोई, दशरथ भवन (अयोध्या), चित्रकूट, दंडक अरण्य, किष्किन्धा (हम्पी), जनकपुर (नेपाल), सरयू नदी, भारद्वाज आश्रम, तुलसीदास जी का मंदिर (वाराणसी), देवगढ़ मंदिर (मध्य प्रदेश)—ये सभी राम की अमर गाथा के साक्षी हैं।
  4. निषादराज का राजमहल आज भी श्रृंगवेरपुर में मौजूद है। प्रयागराज से 40 किमी की दूरी पर है – ये गंगा किनारे बसा श्रृंगवेरपुर धाम ऋषि–मुनियों की तपोभूमि माना जाता है।
  5. राम सेतु—रामेश्वरम और श्रीलंका के मध्य यह सेतु आज भी खड़ा है, इसके पत्थर जल पर तैरते हैं। अमेरिका की स्पेस एजेन्सी नासा (NASA) की छवियों ने इसकी मानव–निर्मित संरचना की पुष्टि की है।
  6. लेपाक्षी, आंध्र प्रदेश—जहाँ जटायु ने माता सीता के हरण के समय रावण से युद्ध किया। यह स्थान आज भी मंदिर के रूप में विद्यमान है।
  7. अशोक वाटिका, श्रीलंका—जहाँ रावण ने माता सीता को बंदी बनाया था। यह उद्यान, जो अब हकगाला वनस्पति उद्यान कहलाता है, नुवारा एलिया के निकट है।
  8. कोबरा हुड गुफा, सिगिरिया—पुरातत्वविदों द्वारा प्रमाणित, जहाँ परंपरा के अनुसार माता सीता को बंदी रखा गया था। “भारत पुनः रामराज्य से अलंकृत हो, जय श्री राम”

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