नंबरों की जंग: क्यों पाकिस्तान नैरेटिव की लड़ाई नहीं जीत सकता
जब बम बरसते हैं और मिसाइलें तेज चलती हैं, उस समय जंग सिर्फ मैदान-ए-जंग पर नहीं लड़ी जाती है — वह टीवी स्टूडियो पर, कूटनीतिक गलियारों पर और जनता की मानसिकता में भी लड़ी जाती है। भारत द्वारा पाकिस्तान के (PoK) में हाल ही के हवाई हमले, खास टारगेट में आतंकी ठिकानों पर अपने शिकार हैं, जिन्होंने एक आदतन ‘नंबरों की जंग’ को जन्म दे दिया है। लेकिन दिलचस्प तथ्य यह है कि चाहे आंकड़े भारत के हों या चाहे पाकिस्तान के पक्ष में, नैरेटिव की जीत बिल्कुल स्पष्ट रूप से भारत के पाले में हो जाती है।
हमले के तुरंत बाद भारतीय मीडिया पर खबरों और तस्वीरों की बाढ़ आ गई। रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि 75 आतंकवादी मारे गए, उनके कैंप तबाह कर दिए गए। टीवी स्क्रीन पर धमाकों, जलते हुए ठिकानों और आतंकी शिविरों में मची अफरातफरी के दृश्य छा गए। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि सिर्फ आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया गया, कोई नागरिक हताहत नहीं हुआ।
जवाबी हमलों का सामना करने के बावजूद भी, दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना ने तुरंत ही एक प्रेस रिलीज़ जारी की, जो जमीन पर ही नहीं, बल्कि सोच और छवि की लड़ाई को भी नियंत्रित करने की कोशिश थी। इस बयान में हमले के असर को धीरे-धीरे कम बताया गया, कहा गया कि “नुकसान बेहद मामूली है” और “कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ।” लेकिन पाकिस्तान यहीं नहीं रुका, उसने एक सक्रिय नैरेटिव-काउंटर शुरू कर दिया।पाकिस्तानी मीडिया में कुछ तस्वीरें और वीडियो दिखाए गए, जिनमें जले हुए ढांचे, मदरसे, और उन इलाकों को दिखाया गया जहाँ भारतीय बम गिरे थे। लेकिन ध्यान से देखें तो इन तस्वीरों में जो चेहरे दिखाए गए, वो आम नागरिक जैसे थे — मदरसों के छात्र, प्रार्थना करने वाले लोग, आम ग्रामीण। पाकिस्तान ने इन्हें ऐसे पेश किया मानो भारत ने निर्दोष लोगों को निशाना बनाया हो।
लेकिन यहाँ एक दिलचस्प विरोधाभास छुपा है: अगर पाकिस्तान नुकसान को कम बताता है, या मारे गए लोगों को ‘आम नागरिक’ बताने की कोशिश करता है, तो यह अनजाने में भारत की नैतिक जीत को मजबूत करता है।
आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
अगर पाकिस्तान कहे ‘नुकसान कम हुआ’, तो भी भारत की जीत
यदि पाकिस्तान आरोप लगाता है कि हमले में कई लोग नहीं मरे, कोई आतंकवादी ठिकाना निधरित नहीं हुआ , या जिन्हें मारा गया वो साधारण लोग थे — तो यह कहानी विश्व के सामने क्या प्रस्तुत करती है? यह साबित करता है कि भारत ने एक जिम्मेदार और कम सीमित, निर्दिष्ट और नियंत्रित हमला किया, जहां आतंकियों को टारगेट किया गया और नागरिकों को हानि नहीं पहुंचाई गई। यह भारत के उस रिटोरिक को पूरी तरह सपोर्ट करता है कि वह एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति है, जो आतंकवाद से लड़ाई कर रही है बिना निर्दोषों को हानि पहुंचाए।
पाकिस्तान ने जब मदरसों और आम लोगों के वीडियो दिखाए , तो उसका इरादा भारत को ‘आक्रांता’ दिखाने का था। लेकिन दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कई आतंकी ठिकाने इन्हीं मदरसों के भीतर या आसपास छुपे होते हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को ये वीडियो पाकिस्तान की मासूमियत नहीं, बल्कि उसकी आतंकी ढांचों को धार्मिक स्थलों की आड़ में छुपाने की रणनीति के तौर पर दिख सकते हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि अगर पाकिस्तान कहता है कि हमला छोटा था या कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, तो दुनिया को यही लगेगा कि भारत ने अपनी सीमा में रहकर सिर्फ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया — यानी भारत के कूटनीतिक और नैतिक दावे को ही मजबूती मिलेगी।
अगर भारत कहे ‘75 आतंकी मारे गए’, तो देश के भीतर भरोसा मजबूत
वहीं भारत की तरफ से 75 आतंकियों के मारे जाने का दावा देश के अंदर एक और संदेश छोड़ता है: सरकार सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं दे रही, बल्कि सख्त सजा दे रही है। एक ऐसे देश में जहाँ आतंकवादी हमलों की दर्दनाक यादें अभी ताजा हैं, यह कहानी सरकार में विश्वास और राष्ट्रीय आत्मसम्मान को बढ़ाती है।
भारतीय जनता जवाबी कार्रवाई नहीं चाहती — वो ऐसी चाहती है कि वह कार्रवाई असरदार हो। 75 आतंकवादियों के मारे जाने का आंकड़ा सिर्फ एक संख्या नहीं है; यह सशस्त्र बलों पर भरोसे की मुहर है। भले ही इसका अंतरराष्ट्रीय सत्यापन मुश्किल हो, लेकिन देश के भीतर इसकी गूंज सत्ता को और मजबूत करती है।
पाकिस्तान को दुविधा यह है कि चाहे वह मरने वालों की संख्या कम दिखाए या ज्यादा, भारतीय जनता के लिए सच्ची जीत यह है कि भारतीय वायुसेना ने सीमा पार जाकर हमला किया, आतंकी ठिकानों पर बम गिराए और सुरक्षित लौट आई। कार्रवाई अपने आप में जीत बन गई है; नुकसान की मात्रा अब गौण है।
पाकिस्तान के लिए कोई मानसिक जीत नहीं
पाकिस्तान के लिए यह स्थिति एक युद्ध शुरू से ही हारने की है। अगर वह ज्यादा हताहत दिखाता है, तो अपनी सैन्य हार स्वीकार करता है। अगर कम दिखाता है, तो भारत के ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के दावे को समर्थन देता है। और अगर मारे गए लोगों को ‘आम नागरिक’ बताने की कोशिश करता है, तो यह अनजाने में दुनिया को बता देता है कि आतंकी ढांचे नागरिक इलाकों में छुपाए गए थे।
1999 के करगिल युद्ध या 2019 के बालाकोट हमलों की तुलना में इस बार पाकिस्तान के पास नैरेटिव बदलने के लिए कम मौके हैं। अब दुनिया पहले जैसी नहीं है; पाकिस्तान की आतंकवाद से मिलीभगत पर अंतरराष्ट्रीय धैर्य खत्म हो गया है। वैश्विक मीडिया भी अब बिना जांच-पड़ताल पाकिस्तान के दावों को नहीं मानता। ऊपर से, भारतीय मीडिया मैप, सैटेलाइट इमेज, इंटरसेप्टेड कॉल्स और स्थानीय गवाहों के बयान दिखा रहा है, जिससे पाकिस्तान के इनकार की विश्वसनीयता और कम हो रही है।
ऐसा ही नहीं, पाकिस्तान के कब्जे के कश्मीर में कोई बड़ा जनविरोध, विरोध-प्रदर्शन, या बड़े पैमाने पर अंतिम संस्कार की खबरें नहीं आईं। यदि वास्तव में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए होते, तो वहां जनांदोलन चला चुका होता। लेकिन वहां की खामोशी खुद ब खुद यह साबित कर रही है कि भारत के हमले आतंकी ठिकानों पर केंद्रित थे।
कूटनीतिक जीत, सिर्फ सामरिक नहीं
जीत भारत की 75 आतंकियों के सफाए तक ही नहीं है। वास्तविक संदेश यह है कि अब भारत पाकिस्तान को समझा रहा है कि ‘लाल रेखाएं’ बदल गई हैं। आतंकवाद अब सिर्फ डॉसियर और कूटनीतिक पत्रों पर आधारित न लड़ा जाएगा। भारत अब हमले की जड़ों तक जाने का अधिकार बनाए रखने में सुरक्षित है।
पाकिस्तान, अपने इनकार के करने में फंस गया है, प्रेस रिलीज़ और ‘आम नागरिकों’ के वीडियो की जाल में। वह खुद को पीड़ित नहीं दिखा सकता, क्योंकि ऐसा करने से वह यह मान लेगा कि उसने उन आतंकवादियों को छुपा रखा था।
नैरेटिव की इस जंग में पाकिस्तान को कहीं भी मानसिक जीत नहीं मिल रही। चाहे आंकड़े 8 मृत, 26 हमले, 35 घायल कहें — या भारत के दावे के अनुसार 75 आतंकवादी मारे गए हों — सच्चाई यही रहेगी कि भारतीय विमानों ने सीमा पार जाकर हमला किया, बम गिराए, और बिना कोई चुनौती झेले लौट आए।